सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं : अगर आप सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं (suryakant tripathi nirala poems) ढूँढ रहे हैं। तो हमारे पास है 5 प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं । ये सभी कविताएं प्रसंग सहित हैं। ये विभिन्न भाव आधरित कविताएं हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
सूर्य कांत त्रिपाठी निराला जी का जन्म फ़रवरी 1896 में बंगाल के मेदिनीपुर नामक जिले में हुआ। इन्हें हिन्दी साहित्य के छायावाद युग के प्रमुख 4 कवि में से एक प्रमुख कवि माना जाता है। ये कवि के साथ निबंधकार, उपन्यासकार, और कहानीकार भी थे। ये प्रमुख यथार्थवादी कवि थे जो वास्तविकता को आधार बनाकर लिखने में विश्वास रखते थे।इनका निधन 15 अक्टूबर 1961 में हुआ।
1. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं – मुझे गीत गाने दो
प्रसंग – प्रस्तुत कविता ‘मुझे गीत गाने दो’ हिन्दी साहित्य के छायावाद युगीन प्रमुख स्तंभ कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित है।
काव्यांश – 1
गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।
काव्यांश – 2
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रूकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।
काव्यांश – 3
भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।
2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं – ख़ून की होली जो खेली
प्रसंग – प्रस्तुत कविता ‘ख़ून की होली जो खेली’ हिन्दी साहित्य के छायावाद युगीन प्रमुख स्तंभ कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित है।
काव्यांश – 1
युवकजनों की है जान;
ख़ून की होली जो खेली ।
पाया है लोगों में मान,
ख़ून की होली जो खेली ।
काव्यांश – 2
रँग गये जैसे पलाश;
कुसुम किंशुक के, सुहाए,
कोकनद के पाए प्राण,
ख़ून की होली जो खेली ।
काव्यांश – 3
निकले क्या कोंपल लाल,
फाग की आग लगी है,
फागुन की टेढ़ी तान,
ख़ून की होली जो खेली ।
काव्यांश – 4
खुल गई गीतों की रात,
किरन उतरी है प्रात की;-
हाथ कुसुम-वरदान,
ख़ून की होली जो खेली ।
काव्यांश – 5
आई सुवेश बहार,
आम-लीची की मंजरी;
कटहल की अरघान,
ख़ून की होली जो खेली ।
काव्यांश – 6
विकच हुए कचनार,
हार पड़े अमलतास के;
पाटल-होठों मुसकान,
ख़ून की होली जो खेली ।
3. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं – अब न होगा मेरा अन्त
प्रसंग – प्रस्तुत कविता ‘अब न होगा मेरा अन्त’ हिन्दी साहित्य के छायावाद युगीन प्रमुख स्तंभ कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित है।
काव्यांश – 1
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
काव्यांश – 2
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
काव्यांश – 3
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
काव्यांश – 4
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
काव्यांश – 5
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।
काव्यांश – 6
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
काव्यांश – 7
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।
4. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं – अट नहीं रही है
प्रसंग – प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ हिन्दी साहित्य के छायावाद युगीन प्रमुख स्तंभ कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित है।
काव्यांश – 1
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
काव्यांश – 2
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
काव्यांश – 3
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में,
मंद – गंध-पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
5. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कविताएं – उत्साह (गीत)
प्रसंग – प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हिन्दी साहित्य के छायावाद युगीन प्रमुख स्तंभ कवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित है।
बादल, गरजो!–
घेर घेर घोर गगन, धाराधर जो!
ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो:–
बादल, गरजो!
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन,
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आये अज्ञात दिशा से अनन्त के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो:–
बादल, गरजो!
Thank you so much ❤️ sir / ma’am I hope you enjoy it.
For more you may visit our other blogs we have lots of shayari, poems, Jokes, thoughts and quotes ??.